Tuesday 24 September 2013

ghazal

कि इश्क सुन  तिरे हवाले ताज करते हैं
कि प्यार कल भी था तुझी से आज करते हैं

हुकूमतों का शोख़ रंग यह भी है यारों
कि हम जहाँ नहीं दिलों पे राज करते हैं

बहुत लगाव है हमें वतन की मिटटी से
इसी  पे जान दें इसी पे नाज़ करते हैं

नरम दिली नहीं समझते देश के दुश्मन
चलो कि आज हम गरम मिज़ाज करते

मिरे वतन के फौज़ियों सलाम है मेरा
 तुझी से मान है तुझी पे नाज़ करते हैं

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

2 comments:

  1. Ek ek she'r apne me laajawaab. Bahut sundar, keep it on.

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  2. Saahitya yatra anavrat aur nirbaadh roop se jaari rahe ! Aameen.

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